Sunday, April 25, 2010

सत्यामृत ...

आओ चलें, वहां - जहां
'सत्यामृत' झर रहा है !

चलते-चलते न रुकें
बढते-बढते, बढते रहें
हम भी पहुंचे वहां
जहां 'सत्यामृत' झर रहा है !

एक बूंद पाकर
हम भी
अजर-अमर हो
'सत्यामृत' बन जाएं !

आओ चलें, वहां - जहां
'सत्यामृत' ... ... !!

14 comments:

vandana gupta said...

एक बूँद पाकर
दिव्यालोक में
खो जायें
हम भी
भावसागर में
डूब जायें

बहुत ही सुन्दर भावाव्यक्ति…………………आपकी रचना चर्चा मंच पर लगा दी गयी है।

रश्मि प्रभा... said...

chalte hain

shama said...

आओ चलें, वहां - जहां
'सत्यामृत' झर रहा है

चलते-चलते न रुकें
बढते-बढते, बढते रहें
हम भी पहुंचे वहां
जहां 'सत्यामृत' झर रहा है
kitna achha khayal hai!

kshama said...

आओ चलें, वहां - जहां
'सत्यामृत' .............।
Wah..sagar me gagar!

Amitraghat said...

"छोटी किंतु सुन्दर कृति..."

NaMaN said...

shyam ji, meri rachnaao par apne vichaar prastut karne k liye bahut bahut dhanywaad....!!

aapki rachnaaye bhi behad sarahneey hai....

-nikita
http://love-you-mom.blogspot.com

नरेश सोनी said...

बहुत खूब श्याम भाई
बहुत सुंदर।

honesty project democracy said...

उम्दा सोच पर आधारित प्रस्तुती के लिए धन्यवाद / आप निचे दिए पोस्ट के पते पर जाकर, १०० शब्दों में देश हित में अपने विचार कृपा कर जरूर व्यक्त करें /उम्दा विचारों को सम्मानित करने की भी व्यवस्था है /
http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html

अजय कुमार झा said...

सत्यामृत मिलते ही खबर करिएगा श्याम भाई हम लोटा लेकर पहुंचते हैं

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

देखन में छोटे लगें

बहुत अच्छी रचना-आभार

संजय भास्‍कर said...

कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
बहुत सुन्दर रचना । आभार
ढेर सारी शुभकामनायें.



Sanjay kumar
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगी आप की यह सत्यामृत कविता.
धन्यवाद

Alpana Verma said...

चलते-चलते न रुकें
बढते-बढते, बढते रहें
हम भी पहुंचे वहां
जहां 'सत्यामृत' झर रहा है
--बहुत ही सुन्दर कहा है..ऐसी मंजिल की ओर चलते चले जाएँ...

अरुणेश मिश्र said...

अप्रतिम ।