शब्दों की भीड में
चुनता हूं
कुछ शब्दों को
आगे-पीछे
ऊपर-नीचे
रख-रखकर
तय करता हूं
भावों को
शब्दों की तरह ही
'भाव' भी होते हैं आतुर
लडने-झगडने को
कभी सुनता हूं
कभी नहीं सुनता
क्यॊं ! क्योंकि
करना होता है
सृजन
एक 'रचना' का
शब्द, भाव, मंथन
मंथन से ही
संभव है
सृजन
एक "रचना" का !
8 comments:
शब्द, भाव, मंथन
मंथन से ही
संभव है
सृजन
एक "रचना" का !
उम्दा कविता, शब्द मंथन की गहराई लिए हुए.
शब्द, भाव, मंथन
मंथन से ही
संभव है
सृजन
एक "रचना" का !
जबाब नही जी, बहुत सुंदर लगा यह शब्द मंथन
sahi kaha sir rachna kaise likhte hai achcha samjhaya...
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
शब्द, भाव, मंथन
मंथन से ही
संभव है
सृजन
एक "रचना" का !
और यह रचना भी सुन्दर मंथन का ही परिणाम है
बेहतरीन
कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है।
आपने एक सुन्दर कविता के रूप में सृजन प्रक्रिया का सत्य सामने रखा है ! बहुत अच्छा लगा ...
शब्दों की भीड में
चुनता हूं
कुछ शब्दों को
आगे-पीछे
ऊपर-नीचे
रख-रखकर
तय करता हूं
भावों को
Is tarah rachana ka nirmaan bada sukun deta hoga,haina?
Post a Comment