क्या दैनिक भास्कर समूह की वहुचर्चित पत्रिका "अहा ! जिन्दगी" बंद होने के कगार पर आ गई है ? ... हां, बंद हो भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है "डी बी कॉर्प ग्रुप" एक बड़ा ग्रुप जो बन गया है ! .... अब वो दैनिक भास्कर पेपर के साथ - साथ बच्चों की पत्रिकाएं भी बेधड़क बेचने में सफल हो रहे हैं .... इसे सफलता कैसे कह दें ... जो लोग पेपर पढ़ते हैं उन्हें सिर्फ पेपर पढ़ने से मतलब होता है बच्चों की पत्रिका कोने-काने में पडी रह जाती है "सच" कहा जाए तो "पाठकों" को इन छोटी पत्रिकाओं की जरुरत ही नहीं होती ..... "हाकर" पेपर के साथ उसे भी फेंक जाता है .... पत्रिकाएं घर-घर पहुंच तो जाती हैं पर उन्हें कोई खोलकर देखता भी है क्या !
.... शायद नहीं, पढ़ना तो बहुत दूर की बात है .... महीना पूरा होने पर पेपर बिल के साथ उनका भी बिल ले जाता है अब सौ-डेढ़ सौ रुपये का बिल .... कितने लोग देखते हैं , कितने लोगों के पास इतनी फुर्सत है, रुपये निकाल कर दे देते हैं ..... हर महीने रुपये समय पर "डी बी कॉर्प ग्रुप" के खाते में जमा .... हजार-दो -हजार नहीं ... लाखों-करोड़ों रुपये .... वाह क्या जिन्दगी है .... वहीं दूसरी ओर उनकी वहुचर्चित पत्रिका "अहा ! जिन्दगी" का ताजा-ताजा "अप्रेल-२०१०" का अंक देखते ही चुप नहीं रहा जाता .... क्यों, क्या हो गया .... क्या हो गया !!! आप खुद देख लीजिये .... कहां हैं सम्पादक (यसवंत व्यास) और कहां है सम्पादकीय .... इतनी बड़ी पत्रिका सम्पादक और सम्पादकीय के बगैर ....उफ़ .... अब क्या कहें .... लगता है "अहा ! जिन्दगी" बंद होने के कगार पर है !!!
12 comments:
जो लोग पेपर पढ़ते हैं उन्हें सिर्फ पेपर पढ़ने से मतलब होता है
achi jaankar di aapne
"हाकर" या दैनिक भास्कर समूह के बाप का राज है?? सीधा तरीका है इस समाचार पत्र को बंद कर दो अगर सभी ऎसा करेगे तो इन्हे खुद ही समझ आ जायेगी,ओर फ़िर यही पीछे भागेगे भाई हमारा समाचार पत्र भी पढॊ
'अहा जिंदगी ' के बंद हो जाने से हिंदी जगत में कोई रिक्तता नहीं आने वाली.
क़यास के तौर पर यह ख़बर भले ही सच हो,
( टेलीफोनिक बातचीत से जो ज़ानकारी हासिल हुई, उससे.. )
हक़ीक़त के नाते इस ख़बर को ख़ारिज़ किया जा सकता है ।
कोई भी पत्रिका का सम्पादकीय ही सबसे पहले पढ़ती हूँ ..इस बार नदारद मिला तो बहुत आश्चर्य हुआ ...!!
अहा जिंदगी बंद नहीं हो सकती। वो तो यशवंत व्यास जी सबकी जिंदगी में रोप गए हैं। उनकी पांच साला मेहनत उसे कायम रखेगी। पूरा विश्वास है। अब वे उजाला फैला रहे हैं, उजाला जो अमर है, उजाला जो अमर रहेगा।
मेरी भी प्रिय है अहा ज़िंदगी........
इतनी बड़ी पत्रिका सम्पादक और सम्पादकीय के बगैर ..aapka kahanaa bilkul sahi hai. aapke kadue sach se 100% sahamat hun.kisee bhi patrika me kam se kam sampaadakiy to hona hi chahiye.
Bada prakhar aalekh hai..!
DR. AMAR KUMAAR JEE
...SHAAYAD AAPANE "AHA ! JINDAGEE" KAA TAAJAA ANK NAHEE DEKHAA HAI ...DEKHANE KAA KASHT KAREN !!!
मेरे दिल की बात कह डाली आपने। कल की बात है, मैं आह! जिन्दगी खरीद के लाया बड़ी खुशी के साथ, लेकिन देखा नमस्कार कॉलम नहीं, फिर देखा यशवंत व्यास का नाम नहीं, सूत्रों से पता किया, वो अमर उजाला दिल्ली पहुंच गए, फिर उनको मेल लिखा, कि वो नमस्कार कॉलम शुरू करें, चाहे ब्लॉग दुनिया में चाहे किसी अख्बार में। आह जिन्दगी, अब स्वाहा जिन्दगी हो गई।
आह जिन्दगी, अब स्वाहा जिन्दगी हो गई।
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