क्या ब्लागजगत में मच रहे बबाल को शांत करने के लिए "चर्चाओं की चर्चा" की आवश्यता आ गई है .... शायद हां, वो इसलिए की आये दिन ये प्रश्न खडा हो जा रहा है की चिट्ठों की जो चर्चाएं हो रही हैं वे कितनी सार्थक व सारगर्भित हैं ..... क्यों ये चर्चाएँ विवादों को जन्म दे रही हैं ...... क्यों इन चर्चाओं के कारण ब्लागजगत में अशांति का माहौल ...... चर्चाकार आपस में मिलकर "चर्चाओं" के सम्बन्ध में एक मापदंड निर्धारित क्यों नहीं कर लेते ?
.... चर्चाओं की सार्थकता तब ही महत्वपूर्ण व प्रसंशनीय कही जा सकती है जब एक निश्चित मापदंड के अनुकूल चर्चाएँ हों अन्यथा ..... अक्सर देखने में आता है की जिन पोस्टों को चर्चाओं में स्थान मिल जाता है वे उतनी प्रभावशाली नहीं होती हैं कि उन पर किसी अन्य मंच पर भी चर्चा की जाए .... ये भी सच है ब्लागजगत में सभी अपनी-अपनी मर्जी के मालिक हैं, किसी को मना नहीं किया जा सकता और न ही किसी को समझाया जा सकता !!
.... लेकिन इतना जरुर है कि यदि चर्चाएँ किसी एक निर्धारित मापदंड के अनुरूप हों, तो चर्चाएँ ज्यादा प्रभावशाली व प्रसंशनीय हो सकती हैं .... कहने का तात्पर्य ये है कि चर्चाओं में पीठ थपथपाने ... पंदौली देने ... भाई-भतीजा वाद .... अपने-तुपने व गुटवाजी का भाव परिलक्षित न हो तो चर्चाएँ कारगर कही जा सकती हैं .... यदि "चर्चाकार" पोस्टों की चर्चा "गुण-दोष " के आधार पर करें तो उन चर्चाओं की निसंदेह प्रसंशा होगी ... मेरा मानना है की चर्चाकार एक "समीक्षक" होता है उसे पोस्टों की न सिर्फ चर्चा करना चाहिए वरन उन पोस्टों की समालोचना भी करना चाहिए, चर्चा के लिए चुनी गईं पोस्टों में "कितना दूध है कितना पानी" है ये उसे बेजिझक उजागर कर देना चाहिए !!!
19 comments:
कितना दूध है कितना पानी
दूध नहीं बस पानी है
हम आपकी हर शिकायत को दूर करने का प्रयास करेंगे. और यही हमारा प्रयास है.
जय हो महाराज,
उपर आ गए हैं आपकी शिकायत दूर करने वाले।
बधाई हो।
पोस्टों की समालोचना भी करना चाहिए
सही बात है।
विचारणीय बात.
बहुत सही कहा आपने.समीक्षा ही नहीं समालोचना करना भी ज़रूरी है.
-- वैसे' चर्चाओं 'की बहार आई हुई ...हर कोने पर मिलने लगी है'लिंक 'बनाम चर्चा !
अजी नकली दुध मै भी आप पानी को तलाश रहे है??? सारी बाल्टी ही आप ले जाये...
बहुत अच्छी बात कही आप ने एक विचारणिया लेख.
धन्यवाद
श्याम भाई
जो बात आप लिख रहे हैं उसी बात को मैंने जब रूपचंद शास्त्री जी को समझाने का प्रयास किया तो वे लाठी डंडा लेकर मुझ पर पिल पड़े। उन्होंने मुझे अपनी भाषा में अराजक और न जाने क्या-क्या कह डाला... इसे आप उनके चर्चा मंच और उच्चारण नामक ब्लाग पर जाकर देख सकते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि मैंने भी उन्हें प्रचलित हिन्दी में नहीं समझाया लेकिन वयोवृद्ध महोदय टस से मस होने को तैयार ही नहीं हुए। उल्टे अपनी ब्लाग की टिप्पणियों का दरवाजा-खिड़की बंद करने की धमकी भी दे डाली। अब यह तो पता नहीं है कि उनकी इस धमकी से उन्हें ब्लाग जगत में कितनी सहानुभूति मिलती है लेकिन अच्छा यह हुआ कि उन्होंने अपनी फोटो पर माला डालकर ब्लाग जगत को अलविदा नहीं कहा, वरना एक पाप मेरे ऊपर चढ़ जाता। सचमुच चिट्ठा चर्चा के नाम पर जो तमाशा चल रहा है उसे बंद होना चाहिए। हम तो सिर्फ आग्रह कर सकते हैं। कोई माने तो ठीक... नहीं माने तो हम उसके ब्लाग पर जाकर टिप्पणी तो कर सकते हैं या नहीं। कोई बैन लगा देगा तो पोस्ट लिखकर असहमति जताएंगे। अरे भाई टिप्पणी कुछ ज्यादा लंबी हो रही है शास्त्री जी को बुरा लग जाएगा। फिर कोई अच्छी पोस्ट लिखोगे तो आऊंगा।
पिछले कुछ दिनों में चर्चा के नाम पर जितना विवाद हुआ और हो रहा है उसने मुझे इस बात के लिए बाध्य कर दिया कि मैं भी आत्ममंथंन करूं और मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि मुझे भी चर्चा के नाम पर प्रस्तुत करने वाली पोस्टों को अब तिलांजलि दे देनी चाहिए , और मैंने दे दी है । इस बार को जगजाहिर भी कर दिया है । शुक्रिया। बहुत बहुत शुभकामनाएं श्याम जी , सच लिखते रहें , कडवा या मीठा , पाठक अपने आप तय करेंगे । अजय कुमार झा
नामुमकिन सा है सीमाओं का बंधन इस इंटरनेट की दुनिया में.
बहुत ही बढ़िया और विचारनीय लेख! शानदार प्रस्तुती!
sahi vichaar
बहुत सही कहा आपने.समीक्षा ही नहीं समालोचना करना भी ज़रूरी है.
आदरणीय श्याम कोरी जी बात आपकी सही है लेकिन आप सब उस महानुभाव का नाम लेने से क्यों डरते है जिसने ये सब गन्दगी मचाई है
श्याम भाई,
मुझे लगता है कि एक बार फिर से मुझे एक टिप्पणी कर देनी चाहिए। पंकज मिश्रा ने सही कहा है कि हमें गंदगी मचाने वाले शख्स का नाम खुलकर लेना चाहिए। अभी एकाध दिन पहले ही किसी ने पोस्ट लिखी थी कि हिन्दी के ब्लागर बुर्का पहनकर लिख रहे हैं। बुर्के का अपने को कोई शौक नहीं है.. न ही अपन किसी का नाम लिखने से डरते हैं। कोई ज्यादे से ज्यादा हमारा क्या कर लेगा... केस ही तो करेगा।
मैं आज सुबह चर्चा मंच पर एक टिप्पणी लेकर गया था लेकिन वहां मेरी टिप्पणी प्रकाशित नहीं की गई। कारण साफ है कल की मेरी टिप्पणियों के बाद रूप के तोपचंद शास्त्री जी की बत्ती गुल हो गई है। उन्हें लगा कि यदि आज भी टिप्पणियों को प्रकाशित कर दिया तो लुंगी फाड़कर सिलाई गई चड्डी भी नहीं बचेगी। बाद में मैं उनके नन्हे सुमन पर समीर जी को बेहतर बाल कविता लिखने पर धन्यवाद देने गया था लेकिन वह टिप्पणी भी प्रकाशित नहीं की गई। उनके उच्चारण नामक ब्लाग पर गया लेकिन वहां भी मेरी टिप्पणी को शायद प्रकाशित नहीं किया गया। मैं कोई टिप्पणी देने के लिए मरा नहीं जा रहा हूं लेकिन मैं देख रहा हूं कि गंदगी फैलाने वाले रूपचंद शास्त्री अब फंस गए हैं। हम लोग कब तक केवल चाटुकारों की जय-जय में शामिल होते रहेंगे। कोई हो सकता है... मैं नहीं हो सकता।
बहरहाल आज मैंने उन्हें अपनी पोस्ट पर चुनौती दी है कि वे बहस करके देख लें... लेकिन उनकी इतनी....... गई है कि उन्होंने टिप्पणी लेने से पहले ही चेतावनी लिख दी है कि जो लोग हमारी प्रशंसा कर सकते हैं वे लोग हमें टिप्पणी करें। (भाव यही है)
इसलिए शास्त्री जी की जय हो... जब तक सूरज चांद रहेगा। शास्त्री जी का नाम रहेगा।
विचारणीय बात.
यदि चर्चाएँ किसी एक निर्धारित मापदंड के अनुरूप हों, तो चर्चाएँ ज्यादा प्रभावशाली व प्रसंशनीय हो सकती हैं
Khule dimag aur manse charcha ho tabhi kuchh nishpann ho sakta hai..is baatpe sahmat hun!
अच्छी बात कही आप ने एक विचारणिया लेख.
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