Monday, July 13, 2009

शेर - 86

शेर - 86
कभी राहें नहीं मिलतीं, कभी मंजिल नहीं मिलती
ये जिंदगी के सफर हैं, कभी हमसफर नहीं मिलते ।
शेर - 85
तुम्हे हम चाहते हैं, न जाने क्यों ये चाहत है
पर हमको है खबर, मिटटी पे पानी की इबारत है।
शेर - 84
जब चंद लम्हों में, मिट जाए सदियों की थकान
फिर रात के ठहरने का, इंतजार किसको है।

16 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगे आप ने तीनो शेर.
धन्यवाद

Vinay said...

हर शेर उम्दा
---
श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग

Murari Pareek said...

waah bahut ghajab ke sher

vandana gupta said...

bahut hi badhiya sher aur aakhiri wala to lajawaab hai.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"तुम्हे हम चाहते हैं, न जाने क्यों ये चाहत है
पर हमको है खबर, मिटटी पे पानी की इबारत है।"
बहुत उम्दा शेर..
बहुत अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....

"अर्श" said...

TINO SE SHE'R TIN ALAG ALAG MIJAAJ KE JANAAB WAAH KHUB KAHE HAI AAPNE...


ARSH

anil said...

वाह ! लाजवाब तीनो शेर शानदार मजा आ गया .

BrijmohanShrivastava said...

राहें नहीं मिलती ,रहे मिले तो मंजिल नहीं मिलती ,जिन्दगी के सफ़र में हमसफ़र नहीं मिलते सुंदर अभिव्यक्ति

दिगम्बर नासवा said...

तुम्हे हम चाहते हैं, न जाने क्यों ये चाहत है
पर हमको है खबर, मिटटी पे पानी की इबारत है।

बहुत hi उम्दा बहुत अच्छा लगा........

गुंजन said...

श्याम "उदय" जी

एक नई साहित्यिक पहल के रूप में इन्दौर से प्रकाशित हो रही पत्रिका "गुंजन" के प्रवेशांक को ब्लॉग पर लाया जा रहा है। यह पत्रिका प्रिंट माध्यम में प्रकाशित हो अंतरजाल और प्रिंट माध्यम में सेतु का कार्य करेगी।

कृपया ब्लॉग "पत्रिकागुंजन" पर आयें और पहल को प्रोत्साहित करें। और अपनी रचनायें ब्लॉग पर प्रकाशन हेतु editor.gunjan@gmail.com पर प्रेषित करें। यह उल्लेखनीय है कि ब्लॉग पर प्रकाशित स्तरीय रचनाओं को प्रिंट माध्यम में प्रकाशित पत्रिका में स्थान दिया जा सकेगा।

आपकी प्रतीक्षा में,

विनम्र,

जीतेन्द्र चौहान(संपादक)
मुकेश कुमार तिवारी ( संपादन सहयोग_ई)

mark rai said...

sir ..har sher me kuchh n kuchh naya hi milta hai....great thinking...

निर्मला कपिला said...

जब चंद लम्हों में, मिट जाए सदियों की थकान
फिर रात के ठहरने का, इंतजार किसको है।
लाजवाब शुभकामनायें

Alpana Verma said...

तुम्हे हम चाहते हैं, न जाने क्यों ये चाहत है
पर हमको है खबर, मिटटी पे पानी की इबारत है।

'मिटटी पे पानी की इबारत' bahut hi khoob sher kaha hai! waah!

shama said...

"Kabhee kiseeko mil gayee raste me manzilen,

Kabhee kisee ke qadam uthe to kho gaye hain raaste...!"

Ashar mere nahee..aapke ashar padhe to yaad aa gaye..!
Kaash aisa ho,ki, 'lamhon me mit jaye sadiyon kee thakan..!'

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रज़िया "राज़" said...

जब चंद लम्हों में, मिट जाए सदियों की थकान
फिर रात के ठहरने का, इंतजार किसको है।
वाह! एक ही शेर में सारी थकान मिट गइ।लाजवाब शेर।

~PakKaramu~ said...

Pak Karamu reading your blog