"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
झौंके बन चुके हैं हम हवाओं के
तेरी आँखों को अब हमारा इंतजार क्यों है।
‘उदय’ तेरी आशिकी, बडी अजीब हैजिससे भी तू मिला, उसे तन्हा ही कर गया।