Tuesday, December 9, 2008

शेर - 2

न चाहो उन्हे तुम, जिन्हे तुम चाहते हो

चाहना है, तो उन्हे चाहो, जो तुमको चाहते हैं।

5 comments:

BrijmohanShrivastava said...

क्या बात है सर /मगर कोई हमें चाहता है ये कैसे पता चले /दूसरी बात वो हमें क्यों चाहता है ये भी तलाश करना पड़ेगा क्योंकि ""सुर नर मुनि सब की यह रीती /स्वारथ लाग करें सब प्रीती ""

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अजी आपने तो दो लाइनों मे ही सब कुछ कह डाला.
बहुत खूब

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Udayaji,
mera blog padhne ke liye shukriya.Main blog ke madhyam se bachchon kee behtaree ke liye koshish to kar raha hoon.bas ap jaise logon ka samarthan chahiye.Apke sher aur kavitaen bahoot sundar hain.age bhee likhte rahiye.Shubhkamnaen.

मुकेश कुमार तिवारी said...

श्याम जी,

ठीक बात है और सलाह भी कि चाहना किसे चाहिये. यह चाह का मामला ही जरा टेढा है यह कैसे पता चले कि कौन तुम्हें चाहता है / कितना चाहता है और क्यों चाहता है?

आपका मेरे ब्लॉग पर आना और अपनी टिप्पणी देना सुखद लगा. आशा है कि आप आगे भी मुझे विजिट करेगें.

मुकेश कुमार तिवारी

अभिन्न said...

उदय जी दो पंक्तियों में ग़ज़ल का सा नशा,
गागर में सागर