Tuesday, January 1, 2019

बहुत बेरहमी से तराशे जाएंगे .... !

01

जरा पत्तों की मजबूरियाँ भी तो तुम समझो 'उदय'
हवा का झौंका जिधर चाहेगा उधर उड़ना पड़ेगा !

02

अभी बिजूका तक तो लगा नहीं है खेत में
विपक्षी.. बेवजह ही चैं-चैं चैं-चैं कर रहे हैं ?

03

किसी की किसी से कोई साहूकारी नहीं
हार भी तेरी है और जीत भी तेरी ?

04

उन्हें चैन न मिलेगा तक तक
जब तक वो खुद को उस्तरे से छील नहीं लेंगे
वो बंदर हैं,
यही तो पहचान है उनकी ?

05

न कर गुमां.. सिर्फ अपनी कौम पर
तेरी बस्ती में कई कौमों का डेरा है !

06

ठंड से कुछ तो सबक ले लो हुजूर
कहीं.. मई की गर्मी जान न ले ले ?

07

सादगी भी बे-फिजूल रही, औ कमीनापन भी
उन्हें.... झूठ ही कुछ ज्यादा पसंद था !

08

आईना तो आईना ही रहेगा 'उदय'
भले चाहे तुम मुँह फेर लो उससे !

09

क्या खूब जुगलबंदी है भक्त औ भगवान की
झूठ का हवन है औ झूठ का ही स्वाहा है ?

10

बहुत बेरहमी से तराशे जाएंगे
वो पत्थर ... जो वक्त के हाथों में हैं ?

अगर चाहो
तो छटपटा कर निकल जाओ, जैसे-तैसे

रच लो खुद को .... अपनी शर्तों पर

कौन जाने, कौन-सा पत्थर
कब 'खुदा' हो जाये !

~ उदय

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