Thursday, October 11, 2018

दोज़ख के ख्याल से सिहर उठता हूँ !

01

दिल भी, कुछ आशिक मिजाज हो रहा है आज
या तो मौसम का असर है, या फिर कोई पास से गुजरा है !

02

लोग, सदियों से छले जाते रहे हैं
आगे भी छले जाएंगे

पहले राजनीति की बुनियाद में छल था
अब सत्ता भी छल युक्त हो गई है

अब,
लोगों को भी छलने की कला सीखनी होगी
नहीं तो
लोग हारते रहेंगे !

03

वो.. कुछ झूठे.. कुछ सच्चे.. ही अच्छे हैं
एक से लोग, हर घड़ी अच्छे नहीं लगते !

( एक से लोग = एक स्वभाव के लोग अर्थात जिनका स्वभाव हर समय एक जैसा होता है ... से है )

04

लौट कर आएंगे, वो ऐसा कह कर गए हैं
क्यों न इस झूठ पर भी एतबार कर लिया जाए !

05

गर तुम चाहो तो मैं कुछ कहूँ वर्ना
सफर खामोशियों का, कहाँ उत्ता बुरा है !

06

इल्जाम उनके रत्ती भर भी झूठे नहीं हैं लेकिन
उनकी म्यादें बहुत पुरानी हैं ?

07

मसला शागिर्दगी का नहीं है 'उदय', उस्तादी का है
कोई, कैसे, किसी... पैंतरेबाज को 'खुदा' कह दे ?

08

पहले ज़ख्म, फिर मरहम, फिर तसल्ली
ये अंदाज भी काबिले तारीफ हैं उनके ?

09

मुगालतों में जिंदगी का अपना अलग मजा है लेकिन
दोज़ख के ख्याल से सिहर उठता हूँ !

( दोज़ख = नर्क, जहन्नुम )

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