Tuesday, September 25, 2018

आडंबर

01

ये जो सियासत है, सियासतबाज हैं
वे अपने नहीं हैं

किसी दिन आजमा लेना, वे मुल्क के भी नहीं हैं !

 02

लोग काम में उलझे रहे, हम इश्क में
कुछ इस तरह.. फ़ना हुई है जिन्दगी !

 03

मजबूरियाँ ले आई हैं .. यहाँ मुझको
वर्ना
कौन खुशनसीब तेरे आगोश से यूँ ही चला आता ?

04

दीवाना हूँ कैसे बाज आऊँ आदत से
तुझे देखूँ, मिलूँ, और चूमूँ न !

05

कुछ हुनर मुझे भी बख्श दे मेरे मालिक
तेरी महफ़िल में अब भी ढेरों उदास बैठे हैं !

06

लगी थी आग, धधक रहे थे जिस्म, दोनों के मगर
कहीं कुछ फासले थे जो उन्हें थामे हुए थे !

07

ये जरूरी तो नहीं हर इल्जाम का मैं जवाब देता फिरूँ
क्या कुछ लोग हँसते हुए अच्छे नहीं लगते ?

08

दबी जुबान से वो खुद को गुलाम कहते हैं
इश्क हो जाये तो फिर शाह कहाँ रहते हैं !

09

जिस दिन गणेश प्रसन्न हुए
घर में ही रुकने, रुके रहने का मन किये
उसी दिन
तुम कर आये विसर्जित

वो भी कहाँ ?
एक दूषित जल में

क्यों ?

क्या ईश्वर -
तुम्हारे आडंबर से छोटे हैं, झूठे हैं ??

~ उदय 

No comments: