Thursday, September 20, 2018

लंगर

01

होंगे वो कातिल जमाने की नजर में, मुझे क्या
मुझे तो, दे जाते हैं सुकूं दो घड़ी में उम्र भर के लिये !

( यहां ... "मुझे क्या" से अभिप्राय ... जमाने से मुझे कोई लेना-देना नहीं है ... से है .... अर्थात मैं क्यूँ परवाह करूँ जमाने की ... )

02

वो, बहुत मंहगी शराब पीता है
ठहरता नहीं है पल भर भी, छक कर शराब पीता है

बैठा है आज लंगर में, इसलिए
काजू, कबाब, टंगड़ी, चिकन चिल्ली के साथ पीता है

हम भी देखेंगे उसे, उस दिन
अपने पैसों से, वो कितनी शराब पीता है !

03

हार गए, थक गए, मर-खप गए
शहर के कइयों नेता ...

मगर
इस, मंदिर-मस्जिद के बीच की ये दीवार
वो
आधा इंच भी
इधर-उधर,
टस-मस कर नहीं पाए !

आज, ये जो तेरे सामने हैं, स्वार्थी, मतलबी लोग
ये तुझे
बरगलायेंगे,
फुसलायेंगे,
ललचाएँगे,
पर तू
इन नामुरादों पे, कभी ऐतबार मत करना

क्योंकि -
सुकून
अमन
चैन
सब कुछ अपना है
और
ये, मंदिर-मस्जिद के बीच की दीवार, भी अपनी है
मंदिर भी अपना है, मस्जिद भी अपनी है

ये शहर भी अपना है !

04

पुतला दहन ... ?
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पुतला दहन
अब एक बहुत पुरानी परंपरा हो गई है
विरोध की

इस प्रतीक से
अब कोई असर नहीं पड़ता है शैतानों पर

अब पीड़ितों को
विरोध का कोई नया तरीका ढूँढना होगा
नहीं तो
शैतान, शाम-रात तक, सब कुछ मुस्कुरा कर भूल जाएंगे

और
आपकी पीड़ा व पुतला दहन
मात्र
प्रतीक बन कर राह जाएंगे

आप .. इक्कीसवीं सदी में हैं
आज
अठारहवीं, उन्नीसवीं, बीसवीं सदी के हथियार
सब फुस्स हैं ....
कुछ .. आज के हिसाब से सोचो .. करो ... ठोको .... ?

05

'उदय' न तो हमें तुम्हारी कविता समझ में आती है
और न ही शेर
क्या लिखते हो, क्या पढ़ते हो, क्या समझते हो
तुम्हीं जानो

हमें तो सब घंडघोल ही लगते हैं

तुम
ऐसा क्यूँ नहीं करते
कुछ और लिखो, जो हमें समझ में आये
सबको समझ में आये
जो दुनिया के लोग लिख रहे हैं, पढ़ रहे हैं

जैसे
कुछ नंगा-पुंगा .. सैक्सी टाइप का ...
मचलते हौंठ, ललचाते स्तन, पुकारती अधनंगी पीठ ...
फुदकते नितम्ब, .. इससे भी कुछ हाई लेबल का

कब तक, बोलो कब तक
तुम अपनी गंवार टाइप की लेखनी से
हमें बेहोश करते रहोगे ??

~ उदय 

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

बेहोश कैसे बेहोश होंगे? बढ़िया।