Friday, September 14, 2018

हिन्दी .... नचइयों की मौज !

इक दिन .. मैं ... बिन बुलाये मेहमान की तरह
एक कार्यक्रम के ... दर्शक दीर्घा में जाकर बैठ गया

मैंने देखा ..
कुछ नचइये हिन्दी को नचवा रहे थे

हिन्दी घूँघट में थी
और
नचइये .. हिन्दी संग मदमस्त झूम रहे थे

नचइये किस मद में थे
यह कह पाना मुश्किल है
क्योंकि -
आजकल .. नशे भी कई प्रकार के होते हैं

खैर .. छोड़ो ...

कुछ देर बाद मैंने देखा
हिन्दी .... ब्रा और पेंटी में नाच रही थी
और
नचइये .. मंजीरे, ढोल, नगाड़े, इत्यादि पीट रहे थे

फिर .. कुछ देर बाद ... क्या देखता हूँ

हिन्दी ... ब्रा-पेंटी औ चुनरी में स्टेज पर चुपचाप खड़ी थी
और .. सारे नचइये कुर्सियों में ससम्मान बैठे थे

हॉल में तालियाँ गूँज रही थीं
पुरुस्कार वितरण का समय आ गया, यह सोचकर

मैं ... उठकर चला आया .... ??

~ उदय

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

कटाक्ष जानदार है। हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।