Saturday, August 25, 2018

हुजूम ...

01

सच ..
लिपट-लिपट के सिमट रही थीं
तकलीफें हमसे

जबकि हमें चाह थी कि कोई और लिपटे !

~ उदय

02

रोज ख्याल बदल जाते हैं उनके
मेरे बारे में

लिखता जो हूँ
लिखे को, मुझसा समझ लेते हैं !

~ उदय

03

वह आई,
और आकर सीधे बाजू में बैठ गई

लगा जैसे
कन्फर्म टिकिट हो उसके पास ... !

~ उदय

04

उतनी अस्तियाँ नहीं थीं
जितनी विसर्जित की जा रही हैं
गंगा भी मौन है
जमुना भी मौन है
सरस्वती भी क्या कहती बेचारी
हुजूम से .... !

~  उदय

05

कल ..... राख बन के मैं ...... गंगा में समा जाऊँगा
आज, जी भर के, उठती लपटों में देख लो मुझको !

~ उदय

06

मेरे बाप की जागीर है, पैसा है
अब, मैं उससे ..

आसमान में मोबाइल उड़ाऊँ
या साईकल से व्हाट्सअप-व्हाट्सअप करूँ
तुम्हें क्या ?

तुम, बेवजह ही
चूँ-चूँ .. चूँ-चूँ ... कर रहे हो .... !

~ उदय 

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

kuldeep thakur said...

जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 28/08/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

मन की वीणा said...

वाह जबरदस्त तंज।

Supriya pathak " ranu" said...

वाह वाह अति सुन्दर