01
सच ..
लिपट-लिपट के सिमट रही थीं
तकलीफें हमसे
जबकि हमें चाह थी कि कोई और लिपटे !
~ उदय
02
रोज ख्याल बदल जाते हैं उनके
मेरे बारे में
लिखता जो हूँ
लिखे को, मुझसा समझ लेते हैं !
~ उदय
03
वह आई,
और आकर सीधे बाजू में बैठ गई
लगा जैसे
कन्फर्म टिकिट हो उसके पास ... !
~ उदय
04
उतनी अस्तियाँ नहीं थीं
जितनी विसर्जित की जा रही हैं
गंगा भी मौन है
जमुना भी मौन है
सरस्वती भी क्या कहती बेचारी
हुजूम से .... !
~ उदय
05
कल ..... राख बन के मैं ...... गंगा में समा जाऊँगा
आज, जी भर के, उठती लपटों में देख लो मुझको !
~ उदय
06
मेरे बाप की जागीर है, पैसा है
अब, मैं उससे ..
आसमान में मोबाइल उड़ाऊँ
या साईकल से व्हाट्सअप-व्हाट्सअप करूँ
तुम्हें क्या ?
तुम, बेवजह ही
चूँ-चूँ .. चूँ-चूँ ... कर रहे हो .... !
~ उदय
सच ..
लिपट-लिपट के सिमट रही थीं
तकलीफें हमसे
जबकि हमें चाह थी कि कोई और लिपटे !
~ उदय
02
रोज ख्याल बदल जाते हैं उनके
मेरे बारे में
लिखता जो हूँ
लिखे को, मुझसा समझ लेते हैं !
~ उदय
03
वह आई,
और आकर सीधे बाजू में बैठ गई
लगा जैसे
कन्फर्म टिकिट हो उसके पास ... !
~ उदय
04
उतनी अस्तियाँ नहीं थीं
जितनी विसर्जित की जा रही हैं
गंगा भी मौन है
जमुना भी मौन है
सरस्वती भी क्या कहती बेचारी
हुजूम से .... !
~ उदय
05
कल ..... राख बन के मैं ...... गंगा में समा जाऊँगा
आज, जी भर के, उठती लपटों में देख लो मुझको !
~ उदय
06
मेरे बाप की जागीर है, पैसा है
अब, मैं उससे ..
आसमान में मोबाइल उड़ाऊँ
या साईकल से व्हाट्सअप-व्हाट्सअप करूँ
तुम्हें क्या ?
तुम, बेवजह ही
चूँ-चूँ .. चूँ-चूँ ... कर रहे हो .... !
~ उदय
4 comments:
वाह
जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 28/08/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
वाह जबरदस्त तंज।
वाह वाह अति सुन्दर
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