Tuesday, July 11, 2017

छिन्न-भिन्न

न हाल पूछा ... न मिजाज जाना ....
कि -
हम .. अंदर से ... छिन्न-भिन्न हैं ....

ये ... जाने-समझे बगैर .....

उफ़ ... उन्ने .....
लिपट के कहा हमसे .....
कि -

हम ... अंदर-ही-अंदर ....
जल रहे हैं .. भुन रहे हैं ... मर रहे हैं ....
बचा लो हमको ....

अब तुम ही बताओ ...
कि -

इन हालात में ..
हम करते क्या ..... ??
गर न सुनते उनकी .. तो करते क्या ... ???

1 comment:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक रचना.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग