22 साल बाद ...
जब लौटो
अपने शहर में
तो वो अपना-सा नहीं लगता
गलियाँ ...
नुक्कड़ ...
बगीचे की शाम ...
चौके-छक्के ... दौड़-कूद ... गप्पें ...
कुछ भी तो अपने नहीं लगते
शहर बदल गया है ..
या फिर मैं ... ?
सोचता हूँ तो खुद को निरुत्तर पाता हूँ
अब वो ...
हंसी-मुस्कान ...
छिपी नज़रें ...
आहटें ...
कुछ भी तो .. अपनी .. नजर नहीं आतीं
सब बदल-सा गया है ... शायद ..
इन 22 सालों में ...
कहीं कोई ...
आहट-सी भी नजर नहीं आती
दीवानगी की ... दिल्लगी की ... ??
~ श्याम कोरी 'उदय'
जब लौटो
अपने शहर में
तो वो अपना-सा नहीं लगता
गलियाँ ...
नुक्कड़ ...
बगीचे की शाम ...
चौके-छक्के ... दौड़-कूद ... गप्पें ...
कुछ भी तो अपने नहीं लगते
शहर बदल गया है ..
या फिर मैं ... ?
सोचता हूँ तो खुद को निरुत्तर पाता हूँ
अब वो ...
हंसी-मुस्कान ...
छिपी नज़रें ...
आहटें ...
कुछ भी तो .. अपनी .. नजर नहीं आतीं
सब बदल-सा गया है ... शायद ..
इन 22 सालों में ...
कहीं कोई ...
आहट-सी भी नजर नहीं आती
दीवानगी की ... दिल्लगी की ... ??
~ श्याम कोरी 'उदय'
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