Monday, May 19, 2014

छले गए हैं लोग ...

ईमानदारी से जीतते तो कोई बात होती
छल औ बेईमानी तो हम भी जानते हैं ?
सन्नाटा और शोरगुल दोनों एक साथ हैं 'उदय'
ऐसे हालात जियादा देर तक अच्छे नहीं होते ?
वो कहते हैं कि अब तुम, हमें ही 'खुदा' समझ लो
क्या रख्खा है, मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में ?
हम बुत हैं, हमें किसी का भय नहीं है
कोई हमसे झूठ की उम्मीद न रक्खे ?
ये जीत, ये हार, हजम हो तो हो कैसे 'उदय'
यकीं नहीं होता,… कि… छले गए हैं लोग ?

3 comments:

Arun sathi said...

साधू साधू

पूरण खण्डेलवाल said...
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पूरण खण्डेलवाल said...

लोकतंत्र का यही उसूल है !