चलो आज से, चित तुम्हारी और पट हमारी
जनता तो मूर्ख है, सिक्का तो उछालेगी ही ?
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उनको भी हक़ है, और उनको भी हक़ है
सम्मान लेने, और देने का
आखिर दोनों … स्वयं-भू जो हैं ?????
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अब जब, वो एजेंट हैं तो हैं, इसमें संशय कैसा
बस, कोई उनसे, मालिकों सी उम्मीद न करे ?
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चोरी-औ-उचक्काई में, उनका कोई सानी नहीं है
मगर अफसोस, वो आज, एक कद्दावर नेता हैं ?
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1 comment:
वसंत-काल की सभी मित्रों को कोटि कोटि मीठी मीठी वधाइयां !
आप की यह रचना रोचक है !
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