तुम तो जानते हो, मुहब्बत फलती नहीं है हमें
फिर क्यूँ, ............. उम्मीद रखते हो हमसे ?
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मुद्दत हुई उनसे मिले-बिछड़े हुए हमें
फिर भी है कि ये दिल मानता नहीं ?
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तू यकीं कर हमें अपने दुश्मनों की भी मौत से गुरेज है
फिर तुझसे तो अपना, ………… दोस्ती का वादा है ?
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मुद्दतों बाद वो कल हमसे मिले थे
मगर अफसोस, खामोशियों की आदत छूटी नहीं उनकी ?
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1 comment:
बहुत ख़ूब
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