कमाल है, अदभुत ! हमारे जनप्रतिनिधि, हमारी सरकारें सचमुच बहुत बहादुर हैं, बेजोड़ हैं, बेमिसाल हैं, जिनकी क्षत्र-छाया में पिछले कुछेक सालों से भ्रष्टाचार व घोटालों की जो निरंतर झड़ी लगी है वह तो अपने आप में आश्चर्यजनक है, और तो और यह सिलसिला थमने का नाम भी नहीं ले रहा है, आयेदिन कोई न कोई प्रकरण फिर सामने आ जा रहा है, इन भ्रष्टाचार व घोटालों से तंग आकर जब देश का जनमानस जनलोकपाल रूपी सशक्त क़ानून की मांग के लिए उमड़ पड़ा तो उसे भी इन्होंने अपने दांव-पेंचों से तितर-बितर कर दिया।
और अब जब हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सजायाफ्ताओं की सदस्यता निरस्त करने संबंधी फरमान सुनाया तो संसद में बैठे सभी जनप्रतिनिधियों की फरमान के खिलाफ भौएँ तन गईं, एक दो नहीं वरन सभी जनप्रतिनिधि आनन-फानन में पुन: एकजुट व एकराय हो गए, एकराय होते ही केंद्र में बैठी गठबंधन सरकार ने सभी दलों व सभी प्रतिनिधियों की मंशा के अनुरूप अध्यादेश जारी कर सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले को पलट दिया जो फैसला उनकी मंशा व भावनाओं के खिलाफ था।
इन हालात में, इन परिस्थितियों में, इस दौर में, जब रोज भ्रष्टाचार व घोटालों के प्रकरण प्रकाश में आ रहे हैं, लूट, डकैती, जालसाजी, अपहरण, फिरौती, बलात्कार, ह्त्या, जैसे गंभीर अपराध घटित हो रहे हैं तब जनलोकपाल रूपी सशक्त क़ानून की मांग नहीं सुनी जायेगी तथा सजायाफ्ता लोगों पर अंकुश लगाने का प्रयास नहीं किया जाएगा तो कब किया जाएगा ? अब सवाल यहाँ यह उठ रहा है कि हमारे द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि जब हमारी नहीं सुनेंगे व देश के सर्वोच्च न्यायालय की भी अनसुनी कर देंगे तो फिर ये सुनेंगे किसकी ?
कहीं ऐसा तो नहीं हमारे प्रतिनिधि अभिमानी हो गए हैं ? स्वयं को भगवान समझने लगे हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं वे यह मान बैठे हैं कि हम ही हम हैं, हमारे सिबाय न कोई था, न कोई है, और न कोई रहेगा ? अगर ऐसा है, वे ऐसा सोच रहे हैं तो मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं हो रहा है कि वे स्वयं ही अपने अपने पैरों पे कुल्हाड़ी मार रहे हैं, खुद ही खुद के पतन के कारण बन रहे हैं, खुद ही खुद के पतन की राह सुनिश्चित कर रहे हैं ? अब तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हमारे ज्यादातर प्रतिनिधि सजायाफ्ता हैं या सजायाफ्ता होने की कगार पर हैं, यदि ऐसा नहीं है तो वे सजायाफ्ताओं के मसले पर सजायाफ्ताओं के लिए इतने रहमदिल क्यों हैं ?
1 comment:
आम जनता को गलत संदेश देते हुये निर्णय
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