प्रधानमंत्री का पद और लोकतंत्र का गौरव !
लोकतंत्र में जब बड़े बड़े आंदोलनों व जनसमूहों को नजर अंदाज किया जाने लगे तथा भ्रष्टाचार, घोटाले व बलात्कार जैसी घटनाएँ निरंतर होनी लगें तब यह समझ जाना चाहिए कि जनमानस अन्दर ही अन्दर उद्धेलित व आक्रोशित हो रहा है, राजनीति व व्यवस्था परिवर्तन के लिए उमड़-घुमड़ रहा है तथा अपनी इच्छा के अनुरूप व्यवस्था व क़ानून चाह रहा है !
लेकिन सवाल ये है कि यदि देश का जनमानस अर्थात दो-तिहाई जनमत राजनैतिक व व्यवस्था परिवर्तन के तौर पर लालूप्रसाद यादव, शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, ममता बैनर्जी, मायावती, जयललिता, सोनिया गांधी, नरेन्द्र मोदी या अरविन्द केजरीवाल को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है तथा अपनी इच्छा के अनुरूप व्यवस्था चाहता है तो क्या यह वर्त्तमान में चलित जोड़-तोड़ की नीति व गठबंधनों की नीति से संभव है ?
शायद नहीं, क्योंकि जब तक ये व्यक्तित्व स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं करेंगे तथा कम से कम 300 सीटों पर चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगे तब तक यह कैसे ज्ञात हो पायेगा कि जनता चाहती क्या है, अत: इस सन्दर्भ में मेरी व्यक्तिगत राय तो यही है कि सभी दलों को अपना अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार चुनाव पूर्व ही घोषित करते हुए चुनाव मैदान में उतरना चाहिए ताकि जनता स्वयं अपने पसंद के दल व उम्मीदवार को पूर्णरूपेण बहुमत से चुन सके !
यदि ऐसा नहीं हुआ या देश के समस्त राजनैतिक दल इस सिद्धांत व व्यवहार के साथ चुनाव मैदान में नहीं उतरे या नहीं उतरते हैं तो जनता क्या चाहती है और किसे प्रधानमंत्री के पद पर देखना चाहती है यह तार्किक व सैद्धांतिक तौर पर प्रमाणित नहीं हो सकेगा, और जब तक जनभावनाओं व जनमत के अनुरूप पूर्णरूपेण सरकारें नहीं बनेगीं तथा प्रधानमंत्री के पद सुशोभित नहीं होंगे लोकतंत्र गौरवान्वित नहीं हो सकेगा !
अत: लोकतंत्र के गौरव व सम्मान के लिए यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि जोड़-तोड़ की राजनीति व गठबंधन सरकारों पर अंकुश लगे तथा पूर्ण बहुमत से सरकारें बनें तथा प्रधानमंत्री भी एक तरह से जनता की भावनाओं के अनुरूप अर्थात जनमत से ही बनें, यह तभी संभव हो सकेगा जब सभी राजनैतिक दल प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते हुए कम से कम 300 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरें तथा जनता को ही अपनी पूर्णकालिक सरकारें चुनने का अवसर प्रदान करें !
जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक राजनीति व व्यवस्था में परिवारवाद, वंशवाद, अवसरवाद, जोड़-तोड़, खरीद-फरोख्त, चाटुकारिता, भय व खौफ का बोलबाला रहेगा तथा कुशल नैतृत्व के अभाव में आयेदिन लोकतंत्र कभी दंगों के नाम पर तो कभी आतंक के नाम पर लहु-लुहान होते रहेगा तथा जनभावनाओं के विपरीत गठजोड़ की सरकारें बनते रहेंगी व छोटे-बड़े-मझोले दल मिलजुल कर अपने अपने स्वार्थों की सिद्धि करते रहेंगे जो स्वच्छ व स्वस्थ्य लोकतंत्र के विपरीत आचरण होगा !
गर यह सिलसिला निरंतर चलता रहा, सरकारें बनते रहीं, प्रधानमंत्री बनते रहे तो यह तय है देश का जनमानस उम्मीदों भरी आस से संसद रूपी आसमान को निरंतर तकता रहेगा ! आज का दौर विकास व परिवर्तन का दौर है, निष्पक्षता, पारदर्शिता व स्वतंत्रता का दौर है, अत: मैं व्यक्तिगत तौर पर देश के सभी राजनैतिक दलों से यह आव्हान करता हूँ कि वे नए सिद्धांतों व व्यवहार के साथ चुनाव मैदान में उतरें ताकि जनभावनाओं के अनुरूप अर्थात जनमत के अनुरूप सरकारें बनें, प्रधानमंत्री चुने जाएँ, परिणामस्वरूप लोकतंत्र न सिर्फ मजबूत हो वरन गौरवान्वित भी हो, जय हिन्द !!
1 comment:
जितनी ऊँची सोच रहेगी, उतना ऊँचा देश उठेगा।
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