शिलान्यासी पत्थरों बनाम संभावनारूपी वादों की झड़ी ?
मित्रों, जहाँ तक मेरा मानना है लोकतंत्र का सबसे बड़ा कोई उत्सव है तो वो है चुनाव, जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं उत्सव का शुभारंभ नजर आ रहा है, इस उत्सव के शुरुवाती चरण में आजकल शिलान्यासी पत्थरों का खूब शोर है, चहूँ ओर सिर्फ शिलान्यास ही शिलान्यास हो रहे हैं. मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री लगभग सभी अपने अपने स्तर पर लाखों-करोड़ों रुपयों की योजनाओं का शिलान्यास कर रहे हैं, पर सवाल ये है कि चुनाव पूर्व आनन-फानन में हो रहे शिलान्यास अंजाम तक पहुँच सकेंगे या नहीं ? कहीं ये शिलान्यास चुनाव पूर्व के शिगूफा बन कर न रह जाएँ ? क्योंकि अगर इन्हें अर्थात नेताओं को विकास की इतनी ही चिंता थी तो गुजर रहे कार्यकाल के दौरान ही ये सारे काम संपन्न क्यों नहीं किये गए, यदि किन्हीं कारणों से संपन्न नहीं भी किये जा सके थे तो इनका ठीक चुनाव पूर्व ही शिलान्यास क्यों ?
हालांकि शिलान्यासी पत्थरों के जवाब में वादेरूपी सौगातों अर्थात घोषणाओं की भी खूब झड़ी लगी हुई है, मेरा अभिप्राय यह है कि विपक्षी दलों के नेता भी सत्ता पक्ष से किसी भी मामले में पीछे नजर नहीं आ रहे हैं, एक ओर जहां योजनाओं के शिलान्यासी पत्थरों का शोर है तो दूसरी ओर "हम ये करेंगे हम वो करेंगे" की झडी ताबड़-तोड़ जारी है, कोई लाखों-करोड़ों की योजनाओं से जनमानस को प्रलोभित करने का प्रयास कर रहा है तो कोई टैक्स माफी, आरक्षण में वृद्धि, फिल्मसिटी का निर्माण, रोजगार, मँहगाई जैसे महत्वपूर्ण संभावनारूपी प्रलोभनों से अपने पक्ष में माहौल बनाने की फिराक में नजर आ रहा है, यहाँ यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि चुनाव पूर्व हो रहे इन धडा-धड शिलान्यासों व संभावनारूपी वादों के पूर्ण होने में संदेह उत्पन्न होना भी लाजिमी है !
खैर, ओवरआल इन दलों व नेताओं के प्रयासों को आलोचना के नजरिये से देखना भी उचित नहीं होगा क्योंकि सत्ता में बने रहने के लिए तथा सत्ता में आने के लिए सभी दल अपने अपने स्तर पर प्रयास करते ही हैं, आखिरकार ये प्रयास भी एक तरह से साम, दाम, दंड, भेद की नीति के ही हिस्से हैं जो पक्ष और विपक्ष में बैठे राजनैतिक दल अपने अपने फायदे के लिए आजमाते हैं, आजमा रहे हैं ! इन सब के बीच यह भी विचारणीय है कि आज देश का जनमानस भी काफी चतुर व चालाक हो गया है वह भी इनके लोक लुभावन क्रिया कलापों से अनभिज्ञ नहीं है, वह भलीभांति जानता है नेताओं की कथनी और करनी का भेद ! वैसे, इसमें दो राय नहीं है कि चुनावी सफ़र में वादों, घोषणाओं, शिलान्यासों का भी अपना अपना अलग महत्व है, फिलहाल सभी चुनावी धुरंधरों को शुभकामनाएँ !!
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