लो 'उदय', बात कहाँ की, कहाँ ले आये हैं वो
ऐंसा हुनर, किसी और में देखा नहीं हमने ?
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उनका चूना, खुद उनको ही........लगा रहे हैं लोग
कुछ इस तरह साहित्यिक दुकां चला रहे हैं लोग ?
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अब तुम उस बेजुबाँ पे लाड न दिखाओ मियाँ
कल इन्हीं हांथों से तो, हलाल होना है उसे ??
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चलो माना खुबसूरती पे इतराने का हक़ है तुम्हें
पर, जिस्म की नुमाइश अच्छी नहीं यारा ????
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तमाशा चल रहा है, देख लो सरेआम संसद में
मदारी कौन है...... सिर्फ ये जाहिर नहीं होता ?
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1 comment:
सच ही है..
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