Monday, August 12, 2013

इंसानियत ...

सच ! साम्प्रदायिकता की फसल उन्ने खूब उगाई है
कभी-कभी, पकने के पहले भी उसे वो काट लेते हैं ?

किसे थी खबर, कि वो तिलस्मी हैं 'उदय'
वर्ना, आज हम उनकी कैद में नहीं होते ?

देखना इक दिन 'उदय', वो आपस में कट मरेंगे
किसी के भी जेहन में इंसानियत नहीं बसती ?

उफ़ ! ऐंसा नहीं है कि यहाँ मुफ़लिसी नहीं है
हफ़्तों हो गए उनसे मिले-बिछड़े हमें यारा ?
….
किस किस को है परवाह तेरी जमाने में आज
बस एक बार, तू जीते-जी मर कर तो देख ??

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अपने अपने छोर में, अपनी अपनी डोर।