Monday, July 22, 2013

आधा पागल ?

लघुकथा : आधा पागल 

एक मित्र ... दूसरे मित्र से … तीसरे मित्र की ओर इशारा करते हुए ...

भाई जी, उस पागल को तो समझाओ !
उसे !... उसे मैं तो क्या, कोई भी नहीं समझा सकता !!

क्यों भाई जी ?
क्यों ! ... क्योंकि वह पागल नहीं हैं, आधा पागल है ... और तो और इस संसार में आधे पागलों का कोई इलाज भी नहीं है !!

कुछ तो उपाय जरुर होगा भाई जी ?
हाँ है ... उन्हें समझाया नहीं ... सिर्फ बरगलाया जा सकता है !!!

5 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जानिए क्या कहती है आप की प्रोफ़ाइल फोटो - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Rajesh Kumari said...

आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।

Unknown said...

good to be extream...thn medicore...

प्रतिभा सक्सेना said...

वही तो हो रहा है आज की दुनिया में!

प्रवीण पाण्डेय said...

पागल तो कुछ भी कर सकता है..