Thursday, June 27, 2013

वाह-वाही ...

सच ! वो दर्द लेकर तो खुद ही गये हैं यहाँ से
फिर भी, गुमान है उन्हें अपनी होशियारी पे ?
...
जाने दो ...
उनकी तरह, जिन्दगी बे-वफ़ा नहीं होगी ?
...
इंकलाब .............................................................
......................................................... जिन्दाबाद !
...
हम तो बस, एक लाइन के नीचे दूसरी लाइन खींचने भर के 'शेर' हैं
यहाँ तो लोग हैं,..................... जो खुद को पूरा जंगल समझते हैं ?
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सच ! वाह-वाही लूटने का, बड़ा अच्छा तरीका ढूंढा है उन्ने
किसी की वाल के शब्दों को, अपनी वाल पे अपना कह दो ?
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3 comments:

Kailash Sharma said...

सच कहा है...लेकिन क्या कर सकते हैं जब उन्हें कोई शर्म ही नहीं..

के. सी. मईड़ा said...

ऐसा लगता है जैसे जनाब बेवफा फेसबुक के मारे है

के. सी. मईड़ा said...
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