Monday, February 18, 2013

जय-जयकार ...


सुना है, उनकी पवित्रता......है गंगा-सी पवित्र 
जी चाहे है, ............... एक डुबकी लगा लूँ ? 
... 
खुद की राख, औ खुद का कमंडल, और खुद ही खुद की जय-जयकार 
बस यही आलम है 'उदय', आज के साहित्यिक नागा साधुओं का ??
... 
जिसे हम ख़त समझ रहे थे, वो वारन्ट निकला 
खूब लिया है उन्ने,..... वेलेन्टाइन-डे का बदला ?

3 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत सुन्दर,व्यंगात्मक प्रस्तुति.

Rajesh Kumari said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगल वार 19/2/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

प्रवीण पाण्डेय said...

जय हो..हम तो दूर से ही देख रहे हैं।