वे बिना औकात के भी औकाती हुए हैं
यही तो खेल है, ....... हमारे तंत्र का ?
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सन्नाटा-सा,............... क्यूँ पसरा है आज तुम्हारी बस्ती में
खुशियों ने दम तोड़ दिया है, या कुछ और वजह है मातम की ?
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जब, जुबां से बयां, तुमको कुछ करना नहीं है
फिर, अपनी आँखों पे बंदिशें क्यूँ नहीं रखते ?
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अब हम क्या कहें 'उदय', उनकी औकात चवन्नी से जियादा नहीं है
मगर ... 'खुदा' की मेहरबां देखो, वे ..... 'लालबत्ती' में घूम रहे हैं ?
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उन्ने, आँखों-ही-आँखों में, हमें अपना बना लिया
गर, वो बातों पे उतर आते, तो ... 'खुदा' ही जाने ?
1 comment:
चवन्नी सर्वाधिक इठलाती है..
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