Saturday, December 1, 2012

लालबत्ती ...


वे बिना औकात के भी औकाती हुए हैं 
यही तो खेल है, ....... हमारे तंत्र का ? 
... 
सन्नाटा-सा,............... क्यूँ पसरा है आज तुम्हारी बस्ती में 
खुशियों ने दम तोड़ दिया है, या कुछ और वजह है मातम की ? 
... 
जब, जुबां से बयां, तुमको कुछ करना नहीं है 
फिर, अपनी आँखों पे बंदिशें क्यूँ नहीं रखते ? 
... 
अब हम क्या कहें 'उदय', उनकी औकात चवन्नी से जियादा नहीं है 
मगर ... 'खुदा' की मेहरबां देखो, वे ..... 'लालबत्ती' में घूम रहे हैं ? 
... 
उन्ने, आँखों-ही-आँखों में, हमें अपना बना लिया 
गर, वो बातों पे उतर आते, तो ... 'खुदा' ही जाने ?

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

चवन्नी सर्वाधिक इठलाती है..