दौलतें सब की 'उदय', यहीं छूट जानी हैं
लोग, खामों-खाँ उछल-कूद कर रहे हैं ?
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खिड़की, चौखट, आँगन, ... सब सूने-सूने-सूने हैं
उनके ............................. चले जाने के बाद ?
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देर-सबेर ही सही 'उदय', इक दिन वो पल आएगा
कुकुर-बिलई के चंगुल से, देश मुक्त हो जाएगा ?
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वो हमसे परसों की गारंटी ले के गए थे 'उदय'
लो, वो खुद ही .......... आज शाम चल बसे ?
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वो मर्जी के मालिक हैं, हमें संगदिल कह सकते हैं
मन ही मन चाहते रहना, गुनाह तो नहीं है 'उदय' ?
1 comment:
गारंटी तो बस वर्तमान पल की है।
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