बेवफाई का इल्जाम, ..... तुम यूँ न लगाओ यारो
खामोशियों की वजह, कुछ और भी हो सकती है ?
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शायद, अब हम नहीं मिल पाएंगे तुमसे
दरमियाँ हमने, इक लकीर खींच दी है ?
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अब तो बाज आ जाओ ख्वाबी मंसूबों से
कहीं, दो गज जमीं के लाले न पड़ जाएं ?
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उस बूढ़े का तुम इम्तिहां न लो, कहीं गिर न जाए
ढेरों लोगों ने मिल के, खडा रक्खा है उसको ???
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कोई समझाए उन्हें, कि वो शायर नहीं हैं, सरपंच हैं
गर, सरपंची बयां करते, तो हम भी उन्हें दाद देते ?
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