अब तक, छल-कपट-औ-दांव-पेंच से, जीती उन्ने लड़ाई है
पर अब, चारों खाने चित्त होने की, उनकी नौबत आई है ?
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सच ! अब इसमें रंज कैसा, मुहब्बत हमने की है
कहीं दिल को लगी है, तो कहीं दिल को चुभी है !!
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जमीं पे, पांव भर जगह नहीं दी किसी जालिम ने 'उदय'
अब हमारे इल्म के परिंदे आसमां में उड़ रहे हैं ?
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गर, उठने की कोई शर्त है तो बयां करो, हम पूरा करें
सच ! तुम्हारे हाँथ की चाय की आदत पड़ चुकी है ?
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तनिक सा फासला तो तुम, तय कर नहीं पाए
न जाने कैसे होंगे वो, जो सितारे तोड़ते होंगे ?
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