Tuesday, September 4, 2012

शर्त ...

अब तक, छल-कपट-औ-दांव-पेंच से, जीती उन्ने लड़ाई है 
पर अब, चारों खाने चित्त होने की, उनकी नौबत आई है ? 
... 
सच ! अब इसमें रंज कैसा, मुहब्बत हमने की है 
कहीं दिल को लगी है, तो कहीं दिल को चुभी है !!
... 
जमीं पे, पांव भर जगह नहीं दी किसी जालिम ने 'उदय' 
अब हमारे इल्म के परिंदे आसमां में उड़ रहे हैं ? 
... 
गर, उठने की कोई शर्त है तो बयां करो, हम पूरा करें 
सच ! तुम्हारे हाँथ की चाय की आदत पड़ चुकी है ? 
... 
तनिक सा फासला तो तुम, तय कर नहीं पाए 
न जाने कैसे होंगे वो, जो सितारे तोड़ते होंगे ? 

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