Monday, July 23, 2012

चाहतें ...

सच ! अब इसे जूनून कहें, या पागलपन 
आज हर हांथों में मशालों की जरुरत है ? 
... 
हम हैं आधे मिट्टी के, और हैं आधे पत्थरनुमा
और उनकी चाहतों में, सिर्फ हीरे-जवाहरात हैं ?

1 comment:

Rajesh Kumari said...

आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २४/७/१२ मंगल वार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं