सफ़र अपना 'उदय', दो-चार कदमों का नहीं है
कोई समझाए उन्हें, गर आना जरुरी है तो कमर कस के आएँ ?
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कदम कदम पे, उन्ने माथा टेका है 'उदय'
अब हम कैसे मान लें, कि - वे भगवान हैं ?
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उफ़ ! क्या खूब सजा दी है हमें उन्ने 'उदय'
कि - पानी पे लिखे जज्बात ही क़ुबूल होंगे !
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