Monday, June 25, 2012

खंजर ...


इल्म नहीं था, यकीं नहीं था, कि - वादे उसके टूटेंगे 
वर्ना जाँच-परख हम लेते, वे कितने कच्चे-पक्के हैं ? 
... 
रहम करो, न बनो तुम कसाई यारो 
ये मुल्क है, ..... कोई बकरा नहीं है ? 
... 
खंजर धंसा है पीठ में यारों के हाँथ का 
अब किसको कहें कि यार तुम इसको निकाल दो ?

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

क्या कहें, रीति प्रीति की बदल रही है..