चूल्हे पे गंजी देख के बच्चों में आस थी
पानी उबल रहा था, और माँ उदास थी !
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सच ! इस कडुवे की लत सुधार लो 'उदय'
कहीं ऐंसा न हो, मीठा जहर लगने लगे ?
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बहुत भटका हूँ, भटकते रहा हूँ, सुबह-औ-शाम 'सांई'
पर अब ..... तेरी चौखट से जाने को जी नहीं करता !
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लो, सब देखते रहे, और उनने झंडा गाड़ दिया
कौन कहता है हिमालय पे साईकल नहीं जाती ?
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जिस दिन हम खुद को किसी का कर देंगे 'उदय'
सच ! ये तन्हाई भी मिट जायेगी !!
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