Wednesday, May 23, 2012

बसर ...


ये किसने कह दिया तुमसे, कि हम सरकारी गुलाम हैं 
गुलाम हैं तो, मगर दौलत के हैं !!
... 
आज उनके रुख की कुछ झलक-सी दिखी है 
मगर अफसोस, वो भी धुंधली-धुंधली-सी है ! 
... 
पंछी तक तो उड़ान भर रहे हैं, शहर से तेरे 
गर बसर होता, तो हमारा होता कैसे ?

1 comment:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

लगे रहो श्याम भाई, बसर तो होते रहेगा। :)