Wednesday, May 9, 2012

वटवृक्ष ...


मेरे साये में शीतलता 
मीठे फलों-सी है ... 
मंद-मंद हवाओं के झौंके 
भीनी खुशबू-से हैं ... 
हर पल ... हर क्षण ...
सुकून, चैन, आराम ...
बेहिसाब हैं, मेरे साये में !
चिलचिलाती धूप हो 
या हो मुसलाधार बारिश 
तुम, मेरे साये में ... 
जिंदगी गुजार सकते हो 
मैं कोई और नहीं ...
वटवृक्ष हूँ ! तुम्हारा हूँ !!

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अपने विशाल आँगन में सबके लिये स्थान है यहाँ..

M VERMA said...

बहुत खूब.
वटवृक्ष यानी आश्रय

yashoda Agrawal said...

कल 012/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .

धन्यवाद!

Anupama Tripathi said...

विशाल ह्रदय ...
विस्तार लिए ...
सुंदर रचना ...
शुभकामनायें ...!

Onkar said...

ek alag si rachna

sudha prajapti said...

वटवृक्ष से साये में जिन्दगी गुजर सकती है पर कोई नया वृक्ष जन्म नहीं ले सकता :)