Friday, April 20, 2012

आम और ख़ास ...

बंजर जमीं को भी 'उदय', हम अक्सर कुरेदते रहे हैं 
शायद कहीं कोई, अंकुर निकल आए !!
... 
बुलंदियां शोहरत की, यूँ ही नहीं मिलतीं 'उदय' 
रूह भी चीखी है, औ जिस्म भी टूटा है !
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हमें तो नहीं, पर उसे जरुर हमारी वाह-वाही की दरकार है 
बस, इत्ता-सा फर्क है 'उदय', आम और ख़ास में !!