Monday, March 19, 2012

लिंग परिक्षण ...

कोरे कागज़ रूपी साहित्यिक गर्भ में
एक कविता
पल रही थी, बन रही थी, जन्म ले रही थी
अभी
कविता के -
अंग
रूप
आकार
उभर ही रहे थे
कि -
एक आधुनिक गुरु-ज्ञानी ने
नजर डाल, कविता का लिंग परिक्षण कर दिया
जैसे ही लिंग का ज्ञान हुआ ... कन्या ...
एक सशक्त कविता ... कमजोर मान ली गई
और ... फिर ...
जन्म के पूर्व ही
गर्भ में ... कविता रूपी भ्रूण की ... ह्त्या ... कर दी गई !
ठीक उसी तरह ... जिस तरह ...
कन्या भ्रूण की ...
लिंग परिक्षण उपरांत ... कर दी जाती है ह्त्या !!

3 comments:

shyam gupta said...

अस्पष्ट भाव....

कडुवासच said...

@Dr. shyam gupta ji ...
जी हाँ ... कुछ कुछ छिपा हुआ है ... भाव पूर्णत: स्पष्ट नहीं हैं ... किन्तु सांकेतिक भाव स्पष्ट हैं ... !!

प्रवीण पाण्डेय said...

सन्नाट, कई कृतियाँ कहाँ सामने आ पाती हैं, चाह कर भी।