Wednesday, March 7, 2012

बुरा न मानो होली ...

जब जब चाहा मैंने, रंग जाना प्यार के रंगों में
न जाने क्यूँ, तूने सिर्फ गुलाल से मन भाया है !
...
सच ! तूने ये किस रंग में रंग दिया है मुझे
तेरी सखियाँ ही मुझसे खफा-खफा सी हैं !!
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वैसे भी तेरे प्यार का रंग कुछ इस कदर चढ़ा है मुझ पे
कि, किसी और रंग के चढ़ने की गुंजाइश नहीं दिखती !
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सच ! वैसे पिछले साल का रंग उतरा नहीं है
न जाने, इस बार फिर से, तेरे क्या इरादे हैं ?
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आज होली के रंगों में, न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान है
यह सांई, नानक, महावीर, बुद्ध का सतरंगी हिन्दुस्तान है !
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सच ! जी चाहे, जो तेरा, उस रंग से, रंग दे मोहे
फिर न कहना, किसी और को मौक़ा मिल गया !
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प्यार से हर बार, रंगा तो तूने ही है मुझे
पर इस बार इच्छा किसी की और भी है !
...
तुम अगर चाहो तो रंग बनके तुम से लिपट जाएं
बात बिगड़ी तो कह देना, "बुरा न मानो होली" है !

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जय हो..

आपका अख्तर खान अकेला said...

sahi khaa hai uday bhaai

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...होली की शुभकामनाएं....