Friday, January 27, 2012

... ईमान को भी बेच के खा जायेंगे !

सुनते हैं कि वो सुगर-पेशेंट है यारा ... फिर भी
न जाने क्यूँ ? कड़वी बातों से परहेज करता है !
...
हर बार की तरह, इस बार भी बहुत खुश है
मुझे बुरा कह कर, खुद अच्छा बन गया है !
...
कहीं कहीं तो अक्ल पे, शक्ल का पर्दा है
तो कहीं, शक्ल-औ-अक्ल दोनों बेपर्दा हैं !
...
सच ! उसकी ये आदत भी काबिले-तारीफ़ आदत है
किसी का नाम पूंछो तो, वो खुद का नाम रखता है !
...
झूठी ख्वाहिशों में वे कुछ इस कदर डूबे हुए हैं
लग रहा है, ईमान को भी बेच के खा जायेंगे !

4 comments:

Unknown said...

बहुत बढ़िया रचना है ।
कृपया मेरे भी ब्लॉग में पधारें ।
मेरी कविता

***Punam*** said...

dekhan mein chhote lagen.....

प्रवीण पाण्डेय said...

क्या करें, फितरत कहाँ बदलती है..

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं....
मां शारदे को नमन!