Tuesday, January 3, 2012

ताप ...

फट पडी थी
धरा
ताप के बढ़ जाने से !
हो जाने दो
नम
इसे, तुम हो जाने दो !
इन तूफानों सी
बारिश को
तुम
मत रोको
झरने दो, झर जाने दो !!

3 comments:

vidha-vividha said...

इन तूफानों सी
बारिश को
तुम
मत रोको
झरने दो, झर जाने दो !!
लिखने की हुड़क भी ऐसी ही होती है.

प्रवीण पाण्डेय said...

जलन मिटाने पानी बरसे।

***Punam*** said...

इन तूफानों सी
बारिश को
तुम
मत रोको
झरने दो, झर जाने दो !!


शायद इनसे कुछ जलन कम हो सके...