हमारे गाँव में, सरकारी पैसे से
स्कूल बिल्डिंग बन गई है
आधे-अधूरे में
आज, लोकार्पण भी हो गया है !
मंत्री, अफसर, और ठेकेदार
तीनों
लोकार्पण के अवसर पर
बहुत प्रसन्न थे !
प्रसन्न तो सारा गाँव भी था
नई
स्कूल बिल्डिंग को -
देख-देख कर, छू-छू कर !
हे राम
कहीं पड़ोस के गाँव की तरह
स्कूल खुले बगैर ही
बिल्डिंग खंडहर न हो जाए !!
2 comments:
संभावना गहरी है,
रात अभी ठहरी है।
आपके तेवर इस कविता में संजीदगी से दिख रहे हैं!! संवेदनशील कविता की बधाई!!
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