Friday, January 13, 2012

मजबूर ...

आज फिर मेरा खून खौल उठा है
देख कर उसको
ठीक कल की तरह !
कल भी
उसे देख कर मेरा खून खौल उठा था !
मालुम नहीं, क्यों ?
अक्सर -
झूठे
मक्कार
फरेबी
चापलूस
बेईमान
दोगले ...
लोगों को देख कर
मेरा खून खौल उठता है !
क्या करूँ ?
जी तो चाहता है
इस तरह के, इस किस्म के, इस प्रजाति के
सभी लोगों को
उठा कर, जला कर राख कर दूं !
या किसी
अंधेरे कुए में ले जाकर पटक दूं !
मजबूर हूँ -
इनमें बहुत से, मेरे अपने संगी-सांथी भी हैं !!

2 comments:

N Quamar said...

मजबूर हूँ -
इनमें बहुत से, मेरे अपने संगी-सांथी भी हैं !!

Bahut khoob..

प्रवीण पाण्डेय said...

क्रोध बड़ा ही स्वाभाविक है