आज फिर मेरा खून खौल उठा है
देख कर उसको
ठीक कल की तरह !
कल भी
उसे देख कर मेरा खून खौल उठा था !
मालुम नहीं, क्यों ?
अक्सर -
झूठे
मक्कार
फरेबी
चापलूस
बेईमान
दोगले ...
लोगों को देख कर
मेरा खून खौल उठता है !
क्या करूँ ?
जी तो चाहता है
इस तरह के, इस किस्म के, इस प्रजाति के
सभी लोगों को
उठा कर, जला कर राख कर दूं !
या किसी
अंधेरे कुए में ले जाकर पटक दूं !
मजबूर हूँ -
इनमें बहुत से, मेरे अपने संगी-सांथी भी हैं !!
2 comments:
मजबूर हूँ -
इनमें बहुत से, मेरे अपने संगी-सांथी भी हैं !!
Bahut khoob..
क्रोध बड़ा ही स्वाभाविक है
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