Sunday, December 4, 2011

... भीड़ के बन रहे किरदार हैं !!

न पीने का हुनर था, न बहकने का सबब
सच ! वो पिलाते गए, हम बहकते गए !!
...
मंदिर बैठा - मस्जिद बैठा, मुझे भेद मिला कोने कोने में
नहीं दिखा कहीं जात का डेरा, बैठ गया जब मयखाने में !
...
आज वो मईयत सजा के आप ही
भीड़ के बन रहे किरदार हैं !!
...
न चले तू ताउम्र संग मेरे, कदम-दर-कदम तो क्या
दो-चार कदमों का ही सांथ मिल जाए तो अच्छा !!
...
तू सही, तो सही, न सही, तो न सही
मिल गया तो सही, न मिला तो सही !
...
चलो माना तजुर्बे में, उमर का है फासला लंबा
मगर यारा 'हुनर' में, किसी से कम नहीं हैं हम !
...
यूँ ही भटक के तेरी गलियों में पहुंचा नहीं हूँ
लग रहा है, तुझसे प्यार मुझको हो रहा है !
...
उन्होंने कह दिया कातिल मुझे, अब क्या कहूँ
उन्हीं की आन की खातिर, मैं कातिल हुआ हूँ !
...
चलो अच्छा ही था, जो हम गुमनाम थे यारा
वर्ना, कब के हम भी, सूली चढ़ गए होते !

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

तलवारें चलती मैदानों में,
गड़े जमीं में बने रहें।

Anavrit said...

शायरी से ओत-प्रोत यह रचना अच्छी लगी ।

Anavrit said...

शायरी से ओत-प्रोत यह रचना अच्छी लगी ।