इंसा हो रहे बहरे !
कौमें हो रहीं बहरी !
सियासतें -
भी हो गईं हैं, बहरी !
अब
कहाँ फुर्सत किसी को है
जो
बातें सुन लें -
गरीब
मजदूर
किसान
असहाय, निसक्त व
बिलखती अबला नारियों की !
जिसे देखो, वही -
मस्त है, मदमस्त है !
मस्ती में झूम रहा है !
बहरे हो गए हैं -
बहरे हो रहे हैं लोग
सच ! अब हंगामा जरुरी है !!
1 comment:
अशक्त की शक्ति, उनका स्वर बन किसी न किसी को तो आगे आना होगा।
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