Friday, December 2, 2011

लातों के भूत ...

'उदय' तुम किसे समझा रहे हो
छोडो, जाने दो
बाद में देख लेंगे
आज नहीं तो कल, क्या फर्क पड़ता है ?
जहां इतने साल लग गए
वहां साल-दो-साल और सही !
भ्रष्टाचार, घुटाले ...
हाँ, हाँ, बन जाएगा जनलोकपाल !
पर, पहले
हमें इस मुद्दे को छोड़ना होगा !
क्यूँ, किसलिए ?
अरे भाई, समझा करो
वो कहावत नहीं सुनी क्या !!
लातों के भूत, बातों से नहीं मानते !!!
गर सुनी है
तो छोडो अभी बातें-सातें
सब अपनी अपनी लातें मजबूत करो
और कूद जाओ -
सबक सिखाने, मैदान में -
पहले इन्हें सबक सिखाना जरुरी है !!
फिर देखें -
कौन कहता है जनलोकपाल मजबूरी है !!!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

पर इन्साफ जरूरी है..