Thursday, December 22, 2011

ग्रेजुएट ...

क्या करूँ, क्या न करूँ ?
सोच सोच के -
बहुत टेंशन बढ़ रहा है !

ग्रेजुएट हूँ, इसलिए -
मजदूरी भी नहीं कर सकता !

एक अच्छे घर का हूँ,
इसलिए -
भीख भी नहीं मांग सकता !

आत्मा स्वाभिमानी है,
इसलिए -
चोरी, लूट, डकैती, ठगी, जैसे
असामाजिक -
काम भी नहीं कर सकता !

सोच रहा हूँ -
बार बार यही सोच रहा हूँ !
ग्रेजुएट हूँ -
करूँ तो आखिर क्या करूँ !!

2 comments:

ASHOK BAJAJ said...

इन्सान की बेबशी का रूबरू चित्रण .

प्रवीण पाण्डेय said...

समस्या गंभीर है,
धुंधली तकदीर है।