Tuesday, November 8, 2011

आजादी की दरकार ...

पुरुष धरा
तो औरत आकाश है
पुरुष नदी
तो औरत सागर है
पुरुष पवन
तो औरत संसार है
पुरुष फूल
तो औरत श्रृंगार है
चंहू ओर
औरत ही औरत है
फिर भी
न जाने क्यूं उसे -
आजादी की दरकार है !!

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पृथक रहे तो निर्वाण नहीं..

Pratik Maheshwari said...

पर किस आजादी की दरकार है... यह भी एक जटिल प्रश्न है..