"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Tuesday, November 8, 2011
आजादी की दरकार ...
पुरुष धरा तो औरत आकाश है पुरुष नदी तो औरत सागर है पुरुष पवन तो औरत संसार है पुरुष फूल तो औरत श्रृंगार है चंहू ओर औरत ही औरत है फिर भी न जाने क्यूं उसे - आजादी की दरकार है !!
2 comments:
पृथक रहे तो निर्वाण नहीं..
पर किस आजादी की दरकार है... यह भी एक जटिल प्रश्न है..
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