Monday, November 21, 2011

... दो-चार सही सलामत भी होते !

अभी अभी, उनका एक पैगाम आया है
भूल जाएं, ऐंसा उन्होंने कहलवाया है !
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क्या खूब, ख़्वाब संजोये हैं किसी ने
लगता नहीं, हकीकत से जुदा होंगे !
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आज की सब, फिर नई जिंदगी सी है
बगैर तेरे लगे, जैसे कुछ कमी सी है !
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सच ! दर्द दिल का तड़फ के, बाहर निकल के आ गया
'खुदा' जाने, किसके जेहन में डर छिपा अपमान का !
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सच ! बख्श तो देता तुझे, तेरे हिस्से की जमीं
पर तू ही बता, तेरे पैर कब होते जमीं पर हैं !!
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खता उनकी भी नहीं थी, कुसूर मेरा भी नहीं था
सच ! जवानी जोश था 'उदय', दोनों समा गए !!
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भाव मन में जो उठे, वो पिरो के रख दिए
कौन जाने किस घड़ी, वो खुश हो जाएंगे !
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न सिर्फ मर्जी थी उनकी, वे मर्जी के मालिक भी थे
सच ! हम तो बस, जो वो कहते, करते जा रहे थे !
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लंगड़े, लूले, काणे, तिरपट, भेंगे, कंजे, गूंगे, बहरे
काश ! इनके संग, दो-चार सही सलामत भी होते !
...
तेरी दुआओं के असर से 'खुदा' हो गया हूँ मैं
वरना एक समय तो, इंसान भी नहीं था मैं !

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी बेढंग दुनिया है।

सागर said...

bhaut hi acchi aur umda abhivaykti....