Thursday, November 3, 2011

जन लोकपाल रूपी बवंडर : साहित्यिक जमात संशय में !!

जन लोकपाल रूपी बवंडर को देश में उड़ता देख साहित्यिक मठों में भी खल-बली मच गई तथा आनन्-फानन में एक मीटिंग का आयोजन किया गया, मीटिंग की खबर सुनते ही सारे मठाधीश और उनके चेले-चपाटे जो जिस हालत में थे उसी हालत में तत्काल मीटिंग स्थल पर पहुँच गए ! मठाधीशों, उनके चेले-चपाटों तथा भाई-भतीजों की भीड़ लग गई, चूंकि मुद्दा बेहद संवेदनशील था इसलिए आपस के मन मुटावों को भुला कर सभी एक-दूसरे के मुंह को आशा भरे भाव से निहारने लगे !

मीटिंग के शुभारंभ में कोई भूमिका बांधने, मान-सम्मान जैसे प्रोटोकाल को दर किनार करते हुए सीधे मुद्दे को छेड़ा गया तथा माइक को हाँथ में लेकर चेले-चपाटों के गुरु - गुरुघंटाल ने बोलना शुरू किया - मेरे मन और मस्तिक में वास करने वाले पूज्यनीय, आदरणीय, सम्माननीय, देवी-देवताओं आप को बताते हुए मेरे मन में संशयरूपी हलचल सी मची हुई है फिर भी बताना अत्यंत आवश्यक है कि अपने देश में एक "जन लोकपाल रूपी" बवंडर उठा हुआ है जिससे देश की सत्ता व सभी राजनैतिक दल सहमे व डरे हुए हैं उन्हें इस बात का भय है कि कहीं यह बवंडर उन्हें उड़ाकर ले जाकर किसी अंधेरी काल कोठारी में न पटक दे, और उन्हें सारा जीवन चक्की पीस-पीस कर गुजारना पड़े !

चूंकि हम सभी भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर उनसे जुड़े हुए हैं और किसी न किसी के रहमो करम पर ज़िंदा हैं इसलिए हमने अर्थात यहाँ उपस्थित सभी बड़े बड़े देवताओं ने यह सोच-विचार कर निर्णय लिया है कि इस जन लोकपाल रूपी समस्या से निपटने का कोई न कोई हल क्यों न हम पहले से ही निकालने की दिशा में कदम बढ़ा लें ताकि हमें भी किसी अनहोनी का सामना न करना पड़े, आज की इस मीटिंग के आयोजन का यही एक मात्र मकसद है अब आप सभी अपने अपने विचार व्यक्त करें ... गुरुघंटाल का संक्षिप्त भाषण सुनते-सुनते, सुनते ही सम्पूर्ण कक्ष में सन्नाटा-सा छा गया, सब एक-दूसरे के मुंह को उम्मीद भरी नज़रों से देखने लगे !

लगभग आठ-दस मिनट तक सन्नाटा पसरा रहा, चूंकि सभी जन लोकपाल रूपी बवंडर से भली-भाँती परिचित थे इसलिए भय व संशय ने सबके मुंह को सिल कर रखा हुआ था ... सब की सिट्टी-पिट्टी बंद, लाईट गुल, ब्रेक फ़ैल, को देखते हुए गुरुघंटाल ने पुन: बोलना शुरू किया - सुनो मेरे प्रिय देवी देवताओं, मेरे मन में एक विचार है विचार यह है कि जब बड़े से बड़े नेताओं के विचार शून्य हो रहे हैं तब अपुन लोगों का संशय में रहना कोई अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं है, लेकिन मुझे, आई मीन हमें विश्वास है कि इस समस्या का कोई हल भले हमें नहीं सूझ रहा है पर हमारी बिरादरी के वो "बाबा जी" ... जो हैं तो हमारी बिरादरी के ही पर ... पर वो हम लोगों की गुरुघंटाली के कारण ... खैर छोडो पुराने गिले-शिकवे ... क्यों न एक बार उनसे सलाह-मशवरा कर लिया जाए, मुझे यकीन है कि वे जरुर कोई हल सुझा देंगे ... चारों तरफ से आवाज गूँज पडी - हाँ ... हाँ ... हाँ ... एक वही हैं जो कुछ न कुछ हल जरुर बता सकते हैं !

एक राय पर मीटिंग का समापन हुआ तथा दूसरे ही क्षण दस गुरुघंटालों का एक दल "बाबा जी" की ओर रवाना हो गया ... संयोग देखिये कि जो बाबा जी हर समय साहित्यिक बिरादरी के आयोजनों से उपेक्षित रहे थे आज पूरी की पूरी साहित्यक जमात मुश्किल घड़ी में उन्हीं "बाबा जी" की ओर चल पडी है ... गाँव में प्रवेश करते ही प्रतिनिधि मंडल ने आपस में यह तय कर लिया कि सभी बाबा जी के स्वभाव से परिचत हैं इसलिए उनके कड़वे, तीखे, विषेले, कंटीले, बोल-वचनों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देना है कोई भी सुनकर रोष व्यक्त नहीं करेगा, हमें सिर्फ अपने मतलब की बातें सुनना है !

बाबा जी अपनी झोपडी के बाहर आँगन में ही एक खटिया पर बैठे हुए थे, इन गुरुघंटालों को आते देख खटिया से उठते हुए बोले - आओ चले आओ .. आज गिरगिटों, मेढकों, शेखचिल्लियों, चिलगूजों, मदारियों, जोकरों, लम्पटों, पर एक कविता लिखने का मन बना रहा था ... चलो अच्छा हुआ तुम लोग आ गए, लगता है शहर से तथा ऊंचीं हवेलियों से पेट नहीं भर रहा है इसलिए गाँव और झोपड़ियों पर नजर गडाने आ गए हो, अब आ गए हो आ जाओ, सुनाओ क्या खिदमत करूँ ... बाबा जी के अनमोल-बोल सुनने के बाद धीरे से सब ने अपना दुखड़ा सुनाया ... दुखड़ा सुनकर दो-तीन मिनट सोचने के बाद बाबा जी ने कहा - सब लोग अपने अपने "कान खुजा" कर इधर आ जाओ, एक बार बताऊंगा, ठीक से सुन लेना ... सब लोग अपने अपने "कान खुजा" कर बाबा जी के पास कान सटा कर बैठ गए ... बाबा जी ने जन लोकपाल रूपी समस्या से निदान का एक मंत्र कानों में फूंक दिया ... मंत्र को सुनते ही सब के चेहरे खिल उठे तथा बाबा जी का आशीर्वाद लेकर वापस राजधानी पहुँच कर अपने अन्य सांथियों को मंत्र से अवगत कराया, मंत्र को सुनकर खुशी का माहौल हो गया तथा सभी के चेहरे पहले की तरह चमकने लगे ... सुकूं की ठंडी सांस लेते हुए सब बोल पड़े - अब देखते हैं ये जन लोकपाल रूपी बवंडर हमारा क्या बिगाड़ लेगा !!

1 comment:

अजित गुप्ता का कोना said...

अपनी मोटी बुद्धि में कुछ समझ नहीं आया। जरा स्‍पष्‍ट तो करते। ये बाबा जी कौन है?